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7 मई 2025 को बजेगा का युद्ध का सायरन! डरना मत यह एक सरकार द्वारा मॉक ड्रिल किया जायेगा, ताकि लोगो में युद्ध की स्थिति में भय का माहौल ना बने और अपने आप को कैसे सुरक्षित रख सकते है|

यह सायरन प्रशासनिक भवनों, पुलिस मुख्यालय, फायर स्टेशन पर लगाए जाते हैं. सायरन की आवाज 2-5 किलोमीटर तक सुनाई दे सकती है.

अगर 7 मई को अचानक कोई तेज और डरावनी सायरन की आवाज सुनें तो घबराएं नहीं. यह कोई आपात स्थिति नहीं, बल्कि एक मॉक ड्रिल यानी युद्ध जैसी स्थिति की तैयारी का अभ्यास है. इस दौरान एक ‘जंग वाला सायरन’ बजेगा, ताकि लोगों को बताया जा सके कि युद्ध या हवाई हमले जैसी स्थिति में क्या करना होता है?

जंग वाला सायरन कहां लगाया जाता है?

ये सायरन आमतौर पर पुलिस मुख्यालय, प्रशासनिक भवनों, फायर स्टेशन, सैन्य ठिकानों और शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों में ऊंचाई पर लगाए जाते हैं. इनका मुख्य उद्देश्य सायरन की आवाज ज्‍यादा से ज्‍यादा दूर तक पहुचाना होता है. दिल्ली-नोएडा जैसे बड़े शहरों में इन्हें खासतौर पर संवेदनशील इलाकों में लगाया जा सकता है और इसे देश के हर शहर में इसे लगाया जा सकता है|

सायरन कैसा होता है?

’जंग वाला सायरन’ दरअसल एक तेज आवाज वाला वॉर्निंग सिस्टम होता है. यह युद्ध, एयर स्‍ट्राइक या आपदा जैसी आपात स्थिति की सूचना देता है. इसकी आवाज में एक लगातार ऊंचा-नीचा होता हुआ कंपन होता है, जिससे यह आम हॉर्न या एंबुलेंस की आवाज से बिल्कुल अलग पहचाना जा सके। जो लोग नदी के तटीय क्षेत्रो में रहते है उनको मालूम होगा की नदी का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर होने पर सायरन की आवाज सुनाई देती है|

जंग वाले सायरन की आवाज बेहद तेज होती है. आमतौर पर यह 2-5 किलोमीटर की रेंज तक सुनाई दे सकती है. आवाज में एक साइक्‍ल‍िक पैटर्न होता है. यानी यह धीरे-धीरे तेज होती है, फिर घटती है और ये क्रम कुछ मिनटों तक चलता है. एंबुलेंस का सायरन जहां 110-120 डेस‍िबल की आवाज करता है, वहीं जंग वाला सायरन 120-140 डेस‍िबल की आवाज करता है.

भारत में पहले कब कब बजा था ‘युद्व वाला सायरन’?

भारत में पहली बार सायरन का उपयोग 1962 के चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक‍िस्‍तान जंग के दौरान किया गया था. उस समय ये सायरन विशेष रूप से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अमृतसर जैसे शहरों में लगाए गए थे. इसके अलावा कारगिल युद्ध के दौरान बॉर्डर से लगे इलाकों में इनका उपयोग क‍िया गया था|

जब सायरन बजे तो क्या करें?

सायरन बजने का मतलब है कि कोई आपदा की स्थिति से अवगत कराना है ताकि लोग तुरंत सुरक्षित स्थानों की ओर रवाना हों सके, लेकिन मॉक ड्रिल के दौरान आप पैन‍िक न हों. सिर्फ खुले इलाकों से हट जाएं. घरों या सुरक्षित इमारतों के अंदर जाएं. टीवी, रेडियो और सरकारी अलर्ट्स पर ध्यान दें. अफवाहों से बचें और प्रशासन के निर्देशों का पालन करें.

कितनी देर में जगह खाली करनी होती है?

असली युद्ध जैसे हालात में पहले सायरन से लेकर 5 से 10 मिनट के अंदर सुरक्षित स्थान तक पहुंचना होता है. यही कारण है कि मॉक ड्रिल की मदद से लोगों को यह सिखाया जाता है कि लोग कैसे जल्दी से जल्दी और शांतिपूर्वक सुरक्षित स्थानों तक पहुँच सके |

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